सांकेतिक तस्वीर | पाठकराज
पाठकराज
लखनऊ, 24 जुलाई 2025 – उत्तर प्रदेश सरकार को उस समय झटका लगा जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने प्रदेश में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के मर्जर पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि फिलहाल पुरानी व्यवस्था को बहाल रखा जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी।
बेसिक शिक्षा विभाग का आदेश 16 जून को आया था
राज्य सरकार ने 16 जून 2025 को एक अहम आदेश जारी किया था, जिसमें राज्यभर के हजारों स्कूलों को बच्चों की संख्या के आधार पर नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने की बात कही गई थी। विभाग का तर्क था कि इस कदम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग संभव हो पाएगा।
छात्रों की याचिका से सरकार की योजना पर रोक
इस आदेश को सीतापुर की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 छात्रों ने 1 जुलाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि छोटे बच्चों के लिए नए और दूरस्थ स्कूल तक पहुँचना कठिन होगा, जिससे पढ़ाई प्रभावित होगी और बच्चों की शिक्षा में असमानता उत्पन्न होगी। एक अन्य याचिका 2 जुलाई को भी दाखिल की गई थी, जिससे यह मामला और व्यापक बन गया।
डबल बेंच ने सरकार से जवाब मांगा
गुरुवार को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सरकार के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि “फिलहाल किसी भी स्कूल को मर्ज न किया जाए और पूर्व की स्थिति को बहाल रखा जाए।” कोर्ट ने शिक्षा विभाग से इस नीति की व्यवहारिकता और प्रभावों पर विस्तृत जवाब माँगा है।
क्या था सरकार का उद्देश्य?
सरकार ने मर्जर योजना को यह कहते हुए जायज ठहराया था कि शिक्षकों की कमी दूर होगी, संसाधनों का केंद्रीकृत उपयोग हो सकेगा। गुणवत्ता परक शिक्षा संभव होगी, लेकिन अदालत ने यह माना कि इस योजना का सीधा असर छोटे बच्चों और ग्रामीण इलाकों के छात्रों पर पड़ सकता है।
बड़ा फैसला, आगे की राह अहम
उत्तर प्रदेश में करीब 5000 स्कूलों का मर्जर फिलहाल टल गया है, लेकिन सरकार इस फैसले को शिक्षा सुधार की दिशा में अहम मानती है। वहीं, छात्रों और अभिभावकों का डर है कि यह फैसला शिक्षा की पहुँच और समानता को प्रभावित कर सकता है। अब निगाहें 21 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां राज्य सरकार को अपने फैसले का बचाव मजबूती से करना होगा।