नोएडा। नोएडा के सेक्टर-120 स्थित आरजी रेजिडेंसी हाउसिंग सोसायटी में आगामी शनिवार को अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन (एओए) के चुनाव कराए जाएंगे। पहले यह चुनाव मंगलवार को होने थे, लेकिन कार्यदिवस होने के कारण चुनाव अधिकारी द्वारा तारीख बढ़ाकर शनिवार निर्धारित कर दी गई है। आरजी रेजिडेंसी का यह चुनाव केवल प्रशासनिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वित्तीय खर्चों के मामले में भी चर्चा में है। इसे नोएडा का दूसरा सबसे महंगा एओए चुनाव माना जा रहा है।
15 हजार की नामांकन फीस, 19 उम्मीदवार मैदान में
एओए चुनाव के लिए प्रत्याशी नामांकन शुल्क 15,000 रुपये निर्धारित किया गया है, जो कि नोएडा की अधिकांश सोसायटी चुनावों से काफी अधिक है। इस कारण चुनाव शहरभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। चुनाव में दो पैनलों से कुल 19 लोगों ने नामांकन दाखिल किया है। पूर्व में सेक्टर-137 की पारस टिएरा सोसायटी में ₹5.85 लाख रुपये के व्यय के साथ सबसे महंगा एओए चुनाव दर्ज हुआ था।
नामांकन फीस इतनी अधिक क्यों?
सूत्रों के अनुसार, आरजी रेजिडेंसी की पूर्व कार्यकारिणी (एओए) को कालातीत (Expired) घोषित कर दिया गया था और उसने चुनाव संचालन के लिए निर्धारित 3.25 लाख रुपये जमा नहीं किए। परिणामस्वरूप चुनाव अधिकारी ने नामांकन फीस बढ़ाकर 15,000 कर दी, ताकि चुनाव प्रक्रिया के लिए आवश्यक खर्चों की भरपाई की जा सके।
बिजली बिल भुगतान के लिए डीएम से गुहार
कालातीत एओए के बैंक खातों को डिप्टी रजिस्ट्रार के आदेश से फ्रीज कर दिया गया था, जिसके चलते 58 लाख रुपये से अधिक का बिजली बिल समय पर जमा नहीं हो सका। निवासियों की ओर से जिलाधिकारी (DM) से हस्तक्षेप की अपील की गई। इसके बाद फ्रीज खाते को आंशिक रूप से खोलकर 50 हजार से अधिक की राशि बिजली बिल भुगतान के लिए जारी की गई।
पूर्व अध्यक्ष-सचिव पर भी उठे सवाल
सूत्रों के अनुसार, पूर्व एओए अध्यक्ष और सचिव को चुनाव में वोट देने का अधिकार तो दिया गया है, लेकिन डिबार किए जाने के कारण वे खुद चुनाव नहीं लड़ सकते। हालांकि, इस विषय पर भी विवाद की स्थिति बनी हुई है। डिप्टी रजिस्ट्रार ने चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए जिला पूर्ति अधिकारी को नियुक्त किया है।
चुनाव को लेकर बढ़ा तनाव और उत्सुकता
आरजी रेजिडेंसी में एओए चुनाव को लेकर माहौल राजनीतिक रंग लेता जा रहा है। दो प्रमुख पैनलों के बीच मुकाबला रोचक माना जा रहा है। मतदान को लेकर निवासियों में खासा उत्साह है, लेकिन पारदर्शिता, वित्तीय जिम्मेदारी और पूर्व कार्यकारिणी की भूमिका जैसे विषयों पर गहराते मतभेदों ने चुनावी माहौल को तनावपूर्ण भी बना दिया है।