कच्चे माल की कमी का हवाला देकर
कोलकाता, विकास राजपूत। बंगाल में नजर डालें तो कच्चे माल की कमी का हवाला देकर 13 जूट मिलें बंद हो चुकी हैं। इस कारण लगभग 70 हजार श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। इस समय बंगाल की 60 जूट मिलों में से 17 बंद हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। देश के विभाजन से पूर्व जूट उद्योग में भारत और विशेष रूप से बंगाल का एकाधिकार था। यहां से कच्चे जूट के साथ-साथ तैयार टाट-बोरियां विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं, जोकि विदेशी मुद्रा अर्जन का प्रमुख स्रोत था। यही कारण था कि भारत में जूट को ‘सोने का रेशा’ भी कहा जाता है। पर जूट को सोने का रेशा बनाने और सर्वाधिक रोजगार देने वाला यह उद्योग आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है।
देश के विभाजन से यह उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ। उस समय जूट की 112 मिलों में से 102 भारत के हिस्से में आईं, लेकिन कच्चे जूट का अभाव हो गया। साथ ही वर्ष 1949 में भारतीय रुपये के अवमूल्यन के कारण यहां की मिलों के लिए पाकिस्तान का कच्चा जूट बहुत महंगा हो गया। बंगाल, असम और बिहार के किसानों ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए जूट के उत्पादन में अथक परिश्रम किया और वे अपने लक्ष्य में सफल रहे, लेकिन 1990 के बाद धीरे-धीरे जूट उद्योग की हालत बिगड़ती गई। वैसे तो इसके कई कारक हैं, लेकिन सबसे बड़े कारण वामपंथियों का बंद, हड़ताल और यूनियनबाजी रहे। यही वजह रही कि 102 से इन मिलों की संख्या घटकर 60 रह गई है और अब लगभग प्रत्येक सप्ताह एक जूट मिल बंद हो रही है।