Friday, May 16, 2025 02:32:30 AM

अब चुनावी रण में बाहुबलियों और माफिया का दखल खत्म
जब पूर्वांचल की सियासत बाहुबलियों के इर्द-गिर्द ही घूमती थी

एक समय वह भी था जब पूर्वांचल की सियासत बाहुबलियों के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। दखल ऐसी कि चुनावी रणनीति की गणित भी यही तय करते थे। अब चुनावी रण में बाहुबलियों और माफिया का दखल खत्म हो गया है।

जब पूर्वांचल की सियासत बाहुबलियों के इर्द-गिर्द ही घूमती थी
list of mafia from purwanchal
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नोएडा ब्यूरो – यूपी में बाहुबलियों का सियासत से पूराना नाता रहा है और इनके सियासती दांवपेंच से ही यूपी में सायासय गरमाती रही है। देश की राजनीति की दिशा और दशा हमेशा यूपी तय करती रही है। वहीं, यूपी की राजनीति में बाहुबलियों की मदद से दलों की तैयारियों को पूरा कराया जाता रहा है। बड़े स्तर पर राजनीति के अपराधीकरण का मामला बढ़ा। हालांकि, पिछले कुछ दिनों में बाहुबलियों की सियासत पर लगाम लगती दिखी है।

जिन्होंने यूपी की राजनीति को अपने स्तर पर खूब कंट्रोल किया। यह यूपी की सियासत के बाहुबली कहलाए। दरअसल, प्रदेश में बाहुबलियों के जोर पर राजनीतिक दलों ने चुनाव परिणाम तक को नियंत्रित किया। वोटिंग के दौरान बाहुबलियों के जोर पर क्षेत्र के चुनाव परिणाम को नियंत्रित करने की नीति बनाई गई। बाहुबलियों को पार्टियों की ओर से संरक्षण दिया गया। स्थिति तब विकट हुई, जब बाहुबलियों ने खुद राजनीति में एंट्री मार ली। अब वे सरकार बनाने से लेकर मंत्री बनाने तक को कंट्रोल करने लगे। कई बाहुबलियों ने सियासत की जमीन पर भी अपना सिक्का खूब चलाया। लेकिन, वक्त के साथ बाहुबलियों के सियासत पर पकड़ कमजोर होती गई। आज के समय में प्रदेश की सियासत में बाहुबलियों का कुछ जोर दिखता है। वहीं, बड़े स्तर पर बाहुबलियों को सत्ता के किनारे लगाने में सफलता मिलती दिखी है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के अगस्त 2021 में आए आदेश ने बड़ी भूमिका निभाई।

यूपी की राजनीति को लंबे समय तक अपराधियों ने काबू में करने का प्रयास किया। चुनाव से लेकर रिजल्ट तक को इन आपराधिक चरित्र वाले नेताओं ने खूब अपने इशारों पर नचाया। इसमें ऐसे किरदार रहे, जो सत्ता बदलने के साथ पार्टियों को भी बदलते रहे। विभिन्न दलों में संबंध बने रहने के कारण इनकी प्रासंगिकता भी बनी रही। आइए, यूपी की सियासत के इन नेताओं के बारे में जानते हैं...

अतीक का प्रयागराज से पूर्वांचल तक का सफर


अतीक अहमद ने एक समय पूर्वांचल की राजनीति को कंट्रोल किया। अपराध की दुनिया में बड़ा नाम बनाने के बाद अतीक अहमद ने राजनीति में कदम रखा। 80 के दशक में अपराध की दुनिया में सिक्का जमा चुका अतीक अहमद अपने रुख में बदलाव करने लगा। 1989 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनावी मैदान में उतरे अतीक ने अपने बाहुबल का दम दिखाया। वह चुनावी जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। इसके करीब तीन दशक तक उसकी राजनीति प्रयागराज में गरमाती रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में सांसद बनने वाला अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिमी सीट से बसपा के राजू पाल की जीत को पचा नहीं पाया। 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की हत्या कर दी गई। अतीक और अशरफ इस मामले में आरोपी बनाए गए। दोनों को जेल हुई। इसके बाद भी राजनीतिक रसूख बना रहा। जेल में रहकर भी प्रयागराज और आसपास के इलाकों में वह दहशत कायम रखने में कामयाब रहा। वर्ष 2017 में यूपी में योगी सरकार बनने के बाद अतीक पर एक्शन शुरू हुआ। इसी बीच राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में सरेआम हत्या कर दी गई। अतीक के तीसरे बेटे असद अहमद को इस मामले में आरोपी बनाया गया। अतीक और अशरफ की इसी मामले में जांच के दौरान हत्या कर दी गई।

भदरी इस्टेट के रघुराज या कुंडा के राजा भैया


यूपी के प्रतापगढ़ जिले में एकमात्र बाहुबली हैं, उनका नाम रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया है। कहते हैं, जहां से कुंडा की सीमा शुरू होती है, वहां से राज्य सरकार की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए कि यहां सब कुछ राजा भैया की मर्जी से चलता है। अपराध भी और न्याय भी। राजा भैया से जुड़ी अपराध की कहानियां यहां खूब सुनी- सुनाई जाती है। एक कहानी 1995 की है। कुंडा के मुस्लिम बहुल गांव में आग लगा दी गई। 20 घर जल गए। तीन की मौत हुई। 100 मीटर की दूरी पर तालाब था, वह भी लबालब भरा हुआ। लेकिन पानी की अनुपलब्धता के कारण आग न बुझाए जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इसमें राजा भैया के करीबी के हाथ होने का दावा किया जाता रहा है। राजा भैया के खिलाफ पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने 1996 में कुंडा में सभा की थी। उनके खिलाफ नारे लगाए गए, लेकिन उसी कल्याण सरकार में राजा भैया मंत्री बने थे।

2002 में मायावती सरकार में राजा भैया पर आतंकी होने का ठप्पा लगा। इस मामले के कारण भाजपा- बसपा के बीच विवाद बढ़ा। मायावती सरकार चली गई। इसके बाद बनी मुलायम सरकार में मंत्री बने। राजा भैया पर डीएसपी जियाउल हक की हत्या का भी आरोप लगा है। मामला 2 मार्च 2013 का है। दरअसल, कुंडा के वलीपुर में शाम 7:30 बजे प्रधान नन्हें यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। विवादित जमीन के मामले में हत्याकांड को अंजाम दिया गया। रात 8:30 बजे तक नन्हें समर्थक करीब 300 लोग जमा हो गए। आक्रोशित लोगों ने कामता पाल के घर में आग लगा दी।
कामता को राजा भैया के खास गुड्‌डू सिंह का राइट हैंड कहा जाता था। गांव में उपद्रव बढ़ता गया। डीएसपी दल- बल के साथ गांव में पहुंचे। आक्रोश को शांत करने का प्रयास किया। लोग नहीं माने तो फायरिंग का आदेश दे दिया। पुलिस की फायरिंग में नन्हें यादव के भाई सुरेश यादव की मौत हो गई। इसके बाद भीड़ ने पुलिस को दौड़ा दिया। सीओ जिया उल हक की खूब पिटाई की। बाद में गोली मार दी। हत्या में साजिश की आंच राजा भैया तक आई थी।

पूर्वांचल के सबसे बड़े डॉन मुख्तार


मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन कहा जाता है। उसने जेल से बाहर और जेल में रहते हुए पूर्वांचल से लेकर यूपी की राजनीति को नियंत्रित किया। मुख्तार अंसारी एक प्रतिष्ठित परिवार से आता था, लेकिन वह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा डॉन बन गया। 1970 में प्रदेश सरकार और केंद्र में कांग्रेस ने पूर्वांचल में कई विकास योजनाएं लांच की। सरकारी ठेकों को हथियाने के लिए संघर्ष शुरू हुआ। पूर्वांचल में उस समय मकनु सिंह और साहिब सिंह गैंग का दबदबा था। मुख्तार अपने दोस्त साधू सिंह के साथ मकनू गैंग में शामिल था।
मऊ जिले के सैदपुर में दोनों गैंग के बीच ठेके को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद राहें पूरी तरह से अलग हो गई। साहिब सिंह गैंग का सबसे खतरनाक खिलाड़ी बृजेश सिंह था। वहीं, मुख्तार ने साधु सिंह के बाद अपनी अलग धारा बना ली। 1990 आते- आते मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह एक- दूसरे के दुश्मन बन गए। साधू सिंह की मौत के बाद मुख्तार अंसारी ने राजनीति में एंट्री मारी। मायावती पर भरोसा जताते हुए बसपा के टिकट पर मऊ से चुनावी मैदान में उतर और जीत दर्ज की। मुख्तार ने अपनी छवि डॉन से रॉबिनहुड की बनाई। वह गरीब तबकों के मददगार के रूप में उभरा। गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर अंसारी परिवार का कब्जा था। 1985 से चले आ रहे वर्चस्व को 2002 में भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने तोड़ दिया।

मुख्तार अंसारी इस हार से तिलमिला गया। 2001 में मुख्तार के काफिले पर हमला हुआ। इस हमले को कृष्णानंद राय से जोड़ा गया। 25 नवंबर 2005 को विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने पड़ोस के गांव में जा रहे थे। भंवरकोल की बसनिया पुलिया के पास उनकी गाड़ी पर एक-47 से फायरिंग की गई। उनकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम में उनके शरीर से 67 गोलियां निकली गई। इसके बाद मुख्तार अंसारी कई मामलों में आरोपी बनाया गया। उसके खिलाफ मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, बनारस में कई केस दर्ज हैं। उसका राजनीतिक रसूख भी काफी हद तक टूटा और जेल में एक दर्दनाक और अनसुलझी मौत से इस बाहुबली का अंत हो गया।


 

जौनपुर के रॉबिनहुड धनंजय का क्या कायम है दबदबा


धनंजय सिंह को जौनपुर में रॉबिनहुड के तौर पर माना जाता है। एक समय धनंजय को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया गया। एनकाउंटर में कथित तौर पर मार गिराए जाने वाले धनंजय सिंह ने प्रयागराज में सरेंडर कर सबको चौंका दिया था। छात्र राजनीति से अपना प्रभुत्व जमाने वाले धनंजय सिंह ने एक समय वाई कैटेगरी की सुरक्षा के बीच आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया। कई पार्टियों में रहा। विधायक से लेकर सांसद तक बनने में सफलता दर्ज की। छात्र राजनीति से अपराध और सियासत में कदम रखने वाले धनंजय पर भी अब तक हत्या, हत्या के प्रयास, सरकारी टेंडरों में वसूली व डकैती जैसे एक दर्जन से अधिक मुकदमे हैं। 1998 में ही 50 हजार के इनामी बन चुके धनंजय ने 2002 के विधानसभा चुनाव में रारी क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीतकर सियासी दलों को अपनी ताकत का एहसास भी कराया।
सियासी तौर पर धनंजय सिंह 2009 के बाद सियासी पिच पर कुछ खास बैटिंग नहीं कर पाए। वह 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से जीत हासिल नहीं का पाए हैं। 2009 में वह बसपा के टिकट पर सांसद बने थे। इसके बाद 2017 और 2022 के विधान सभा चुनावों में उन्हे हार झेलनी पड़ी। हालांकि, धनंजय की दूसरी पत्नी श्रीकला ने 2021 जुलाई में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर जीत हासिल की।

 

पूर्वांचल की बादशाहत में ब्रजेश सिंह का बड़ा नाम


पूर्वांचल की बादशाहत में एक बड़ा नाम ब्रजेश सिंह का रहा है। मुख्तार अंसारी को अपराध की दुनिया में सीधी चुनौती ब्रजेश सिंह से मिली। ब्रजेश सिंह की जिंदगी में ट्रेजडी, क्राइम, इमोशन, ड्रामा सब है। वाराणसी के धौरहरा गांव में रहने वाले ब्रजेश सिंह के पिता की 1984 में हत्या कर दी गई। रविंद्र सिंह की हत्या का आरोप पड़ोस के पांचू पर लगा। 1985 में ब्रजेश सिंह पांचू के घर गए। वहां पांचू के पिता हरिहर सिंह बैठे थे। ब्रजेश ने उनका पैर छुआ और गोलियों से छलनी कर दिया। इसके बाद त्रिभुवन सिंह के साथ मिलकर गैंग बनाई और वारदात को अंजाम देने लगे। दोनों गैंग के बीच जमकर विवाद हो गया। इसके बाद यूपी की राजनीति को ब्रजेश ने लंबे समय तक कंट्रोल किया।

गोरखपुर में अपराध का बड़ा नाम हरिशंकर


गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी को अपराध की दुनिया में एक अलग स्थान हासिल है। कहते हैं कि उनके गुर्गे ऐलान करते थे कि आज घर से नहीं निकलना, गोलियां चलेंगी, लाशें गिरेंगी। यूपी की राजनीति में अपराधीकरण की शुरुआत की और फिर उसे स्थापित किया। माफिया से माननीय और फिर मंत्री बन गए। चुनाव हारे तो विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को सौंप दी। पिछले दिनों उनकी मौत हो गई। हरिशंकर तिवारी को गोरखपुर के गोरक्षपीठ के खिलाफ राजनीति करने के लिए जाना और माना जाता रहा है।
 

तमाम सरकारें आती रहीं, जाती रहीं लेकिन मुख्तार और अतीक जैसे बाहुबलियों का रसूख कम नहीं हुआ। लेकिन पिछले आठ सालों से जो कार्रवाई हुई जिसमें केवल जेल भेजने तक नही बल्कि अपराधियों को सजा दिलाने तक का प्रयास सरकार द्वारा किया गया, उसका असर यह है की अब चुनावों में बाहुबलियों का क्रेज खत्म हो रहा है और पॉलिटिक्स भी बदली है। बाहुबलियों को भी लगने लगा है अब अगर आपराधिक छवि लेकर जाते हैं तो राजनीति का रास्ता आसान नहीं है।


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