Monday, July 28, 2025 02:52:27 AM

बिसरख गांव में दशहरा उत्सव नहीं
बिसरख गांव में दशहरे पर नहीं मनाया जाता रावण दहन

ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता है, क्योंकि यह रावण की जन्मस्थली है। गांव में न रामलीला होती है और न ही रावण दहन।

बिसरख गांव में दशहरे पर नहीं मनाया जाता रावण दहन
बिसरख स्थित मंदिर | पाठकराज
पाठकराज

देश भर में दशहरे के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। लगभग पूरे उत्तर भारत में दशहरे में रामलीला के मंचन के साथ-साथ रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। लेकिन, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के एक गांव में बिल्कुल विपरीत तस्वीर देखने को मिलती है। दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव की अगर हम बात करें तो यहां दशहरा में रावण दहन नहीं होता है। इस गांव की परंपरा बिल्कुल ही अलग है, यहां रामलीला का आयोजन भी नहीं होता है। कहा जाता है कि वर्षों से इस गांव में चली आ रही परंपरा का अगर कोई उल्लंघन करता है, तो उसका सर्वनाश हो जाता है।

 

ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थित बिसरख गांव को दशानन रावण की जन्मस्थली माना जाता है। गांव में ही भगवान शिव की शिवलिंग स्थापित है। गांव के लोगों का कहना है कि रावण यहां ही भगवान शिव की पूजा करता था। उसके वध के कारण गांव में न तो कभी रामलीला होती है और न ही दशहरा पर कोई उत्सव मनाया जाता है। बिसरख गांव में दशहरे को लेकर न तो कोई खुशी है और न ही उल्लास होता है। गांव के किसी भी व्यक्ति ने जब पुरानी परंपरा को तोड़कर रामलीला का आयोजन कराया या रावण दहन का काम किया तो उसके साथ अशुभ हुआ। इसके चलते कोई भी रामलीला और रावण दहन नहीं करते हैं। समय बदला है, युवाओं के विचार भी बदल रहे हैं, लेकिन पुरानी परंपराओं और मान्यताओं के विरुद्ध अभी तक कोई भी परिवार या व्यक्ति सामने नहीं आया है, जिसके चलते यह परंपरा आज भी कायम है।

गांव में है रावण का मंदिर
बिसरख गांव में रावण का एक मंदिर भी है। महंत रामदेव ने बताया कि रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा द्वारा स्थापित अष्टकोणीय शिवलिंग मौजूद है। मान्यता है कि रावण और उनके भाई कुबेर इस शिवलिंग की पूजा करते थे। रावण ने भगवान शिव की तपस्या करते हुए इसी शिवलिंग पर अपने सिर को अर्पित किए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें 10 सिर का वरदान दिया था। गांव के अन्य लोग बताते हैं कि दूर-दूर से लोग भगवान शिव और बाबा रावण से वरदान मांगने के लिए यहां आते हैं।


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