Thursday, May 15, 2025 11:32:47 PM

बिहार तेज़ाब कांड का भयावह सच
बिहार तेज़ाब कांड ने उजागर किया राजनीति और अपराध का गठजोड़

सीवान, बिहार में बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के गुर्गों द्वारा तेज़ाब कांड को अंजाम देने की घटना ने राजनीति और अपराध के गहरे संबंधों को दर्शाया।

बिहार तेज़ाब कांड ने उजागर किया राजनीति और अपराध का गठजोड़
तेजाब कांड का ग्राफिक्स
पाठकराज

बिहार में जब भी तेज़ाब कांड की बात होती है, तो दो घटनाएं दिमाग में सबसे पहले आती हैं—भागलपुर का अंखफोड़वा कांड और सीवान का तेज़ाब कांड। भागलपुर में सजायाफ्ता कैदियों की आंखों में तेज़ाब डालकर उन्हें अंधा कर दिया गया था। वहीं सीवान की घटना न सिर्फ अपनी बर्बरता के लिए बदनाम है, बल्कि यह राजनीति और अपराध के गठजोड़ की भयावह तस्वीर भी पेश करती है।

सीवान में चंदाबाबू की दो दुकानें थीं—एक उनके मकान के नीचे और दूसरी बस स्टैंड के पास। यह घटना 16 अगस्त 2004 की है। उस दिन चंदाबाबू पटना में थे। उसी दिन कुछ लोग उनके घर पहुंचे और उनके बेटों से दो लाख रुपये की रंगदारी की मांग करने लगे। बेटों ने जवाब दिया कि उनके पास पैसे नहीं हैं, और पिता के लौटने पर ही बात होगी। गुंडे नहीं माने और बात इतनी बढ़ गई कि मारपीट होने लगी। इसके बाद चंदाबाबू के दो बेटे—राजीव और गिरीश—को घर से उठा लिया गया। फिर उनके तीसरे बेटे सतीश को दूसरी दुकान से अगवा कर लिया गया।

कहा जाता है कि रंगदारी मांगने आए लोग बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के गुर्गे थे। चंदाबाबू का दावा है कि उनके घर पर खुद शहाबुद्दीन ने फोन किया था। सभी बेटों को शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर ले जाया गया। चंदाबाबू ने कई टीवी इंटरव्यू में बताया कि उनकी दुकान के उद्घाटन में शहाबुद्दीन और तत्कालीन मंत्री अवध बिहारी चौधरी आए थे, तभी से शहाबुद्दीन की नज़र उनके व्यवसाय पर थी। इसी वजह से उनके बेटों को अगवा कर मार दिया गया।

हालांकि, इस मामले का एक दूसरा पक्ष भी है। कोर्ट में दिए गए दस्तावेजों के मुताबिक, चंदाबाबू ने बस स्टैंड के पास जो ज़मीन खरीदी थी, उस पर नागेंद्र तिवारी नामक एक व्यक्ति का कब्जा था, जो दुकान खाली नहीं करना चाहता था। मामला सिविल कोर्ट पहुंच गया। इसके बाद नागेंद्र ने शहाबुद्दीन के करीबी दो लोगों को अपनी दुकान में रख लिया। जब चंदाबाबू ने दुकान खाली कराने की कोशिश की, तो विवाद बढ़ गया। इस दौरान हिंसा, आगजनी और अंततः तेज़ाब हमले तक बात पहुंच गई।

घटना की रात चंदाबाबू के बेटे राजीव ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की। उसने बाथरूम से तेज़ाब की बोतल उठाई और गुर्गों पर फेंक दी, फिर बाइक से भाग निकला। लेकिन कुछ दूरी पर शहाबुद्दीन के आदमियों ने उसकी बाइक में टक्कर मार दी और उसे दोबारा पकड़ लिया। इसके बाद सभी बेटों को प्रतापपुर ले जाया गया, जहां खुद शहाबुद्दीन जेल से आकर मौजूद था।

वहीं पर चंदाबाबू के दो बेटों—गिरीश और सतीश—को तेज़ाब से नहलाया गया, फिर उनके टुकड़े-टुकड़े कर बोरे में बंद कर नमक डाल दिया गया। शहाबुद्दीन ने यह पूरी क्रूरता उनके बड़े बेटे राजीव के सामने अंजाम दी। चंदाबाबू का दावा है कि शहाबुद्दीन उन्हें और उनके बड़े बेटे को भी मारना चाहता था, लेकिन राजीव बाथरूम जाने के बहाने वहां से भाग निकला।

पटना में मौजूद चंदाबाबू को इस घटना का पता एक अख़बार के जरिए चला। जब उन्होंने अपने घर और पड़ोसियों को फोन किया, तो कोई जवाब नहीं मिला। उनके परिचितों ने उन्हें सीवान जाने से रोका, क्योंकि उनकी जान को खतरा था। कुछ महीनों बाद चंदाबाबू को पता चला कि उनका बड़ा बेटा राजीव जिंदा है। राजीव को भी महीनों तक अपने परिवार की कोई खबर नहीं थी। इस कठिन समय में कांग्रेस नेता रविंद्र मिश्र ने चंदाबाबू को अपने पटना स्थित घर में शरण दी और बाद में डीआईजी से मिलवाया, जिन्होंने सुरक्षा दिलाने का आश्वासन दिया।

इसके बाद चंदाबाबू और उनका बेटा धीरे-धीरे सीवान लौटे। इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई, जो 14 साल तक चली और अंत में न्याय मिला—लेकिन चंदाबाबू को अपने दो बेटे खोने पड़े, और अंततः राजीव की भी मृत्यु हो गई।


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