Thursday, June 12, 2025 10:21:02 PM

लालू यादव जन्मदिन विशेष
जन्मदिन विशेष: ठेंठ बोली से सत्ता के शिखर तक — लालू यादव की संघर्ष और समर्पण की कहानी

लालू प्रसाद यादव ने अपना जन्मदिन मनाया, जो गरीबी से उठकर बिहार के राजनीतिक शिखर तक पहुंचे। उनके राजनीतिक सफर ने सामाजिक न्याय के लिए नई दिशा स्थापित की।

जन्मदिन विशेष ठेंठ बोली से सत्ता के शिखर तक — लालू यादव की संघर्ष और समर्पण की कहानी
जन्मदिन विशेष | पाठकराज
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पटना। भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित और रंगीन शख्सियतों में से एक लालू प्रसाद यादव आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। गरीब परिवार से निकलकर बिहार की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले लालू यादव की कहानी सिर्फ एक राजनेता की नहीं, बल्कि एक संघर्ष, समर्पण और सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन की गाथा है। पाठकराज परिवार की तरफ से लालू यादव जी को जन्मदिन की विशेष शुभकामनओं के रूप में पेश है एक न्यूज रिपोर्ट

 

गांव से दिल्ली तक की यात्रा

लालू यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक सामान्य यादव परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे और घर की आर्थिक स्थिति सामान्य से भी नीचे थी। लेकिन लालू की सोच बचपन से ही अलग थी — वो व्यवस्था को बदलने का सपना देखते थे।

उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की और वहीं छात्र राजनीति में क़दम रखा। छात्र संघ के अध्यक्ष बनने के बाद लालू की पहचान तेज-तर्रार, हाजिरजवाब और जनता से जुड़ाव रखने वाले नेता के रूप में बनने लगी।

 

जेपी आंदोलन से मिली पहचान

1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए 'संपूर्ण क्रांति आंदोलन' ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दी। लालू यादव उस समय युवाओं की आवाज बनकर उभरे और 1977 में महज 29 वर्ष की उम्र में लोकसभा सांसद बन गए। यह उनकी राजनीतिक प्रतिभा और जमीन से जुड़े नेतृत्व का बड़ा प्रमाण था।

 

मुख्यमंत्री बने, जातीय राजनीति को दी नई दिशा

1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उन्होंने राज्य की राजनीति को नई दिशा दी। उन्होंने पिछड़ी जातियों को सत्ता की मुख्यधारा में लाकर 'सामाजिक न्याय' की राजनीति को मजबूती दी। 'भूरा बाल साफ करो' जैसे नारे और उनके जातिगत समीकरण ने उन्हें पिछड़े वर्गों का मसीहा बना दिया। उनकी शैली आम आदमी से इतनी जुड़ी हुई थी कि वो हमेशा ठेंठ भोजपुरी या देशज भाषा में बोलते रहे, जिससे लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ते गए।

 

रेल मंत्री के रूप में बेमिसाल कार्यकाल

2004 में जब लालू यादव रेल मंत्री बने, तो उन्होंने भारतीय रेलवे को घाटे से उबारकर मुनाफे में लाने का दावा कर सबको चौंका दिया। हार्वर्ड और आईआईएम जैसे संस्थानों में उनके मैनेजमेंट स्टाइल पर केस स्टडी बनाई गई। 'गरीब रथ' ट्रेन उनकी सोच का परिचायक बनी।

 

चुनौतियां और विवाद

लालू यादव का राजनीतिक जीवन विवादों से भी अछूता नहीं रहा। चारा घोटाला मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा और आज भी वह कई कानूनी मामलों का सामना कर रहे हैं। लेकिन उनके समर्थकों का दावा है कि लालू सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा और सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं।

 

राजनीति में हास्य और ह्यूमर का अनोखा मिश्रण

लालू यादव की पहचान सिर्फ एक राजनेता की नहीं, बल्कि हास्य और ह्यूमर से भरपूर भाषणों, तंजों और देहाती अंदाज़ के लिए भी होती है। चाहे संसद हो या रैली, उनका भाषण सुनने के लिए लोग खिंचे चले आते हैं। उनका यह देशी अंदाज़ उन्हें राजनीति के शिखर पर भी भीड़ से अलग करता है।

 

परिवार और राजनीतिक विरासत

लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी भी बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनके बेटे तेजस्वी यादव आज बिहार की राजनीति में अगली पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं। लालू की राजनीतिक विरासत अब उनके पुत्रों और पार्टी के कंधों पर है। 

लालू यादव केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक दौर हैं — जब एक गरीब का बेटा सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा और पूरे देश को बताया कि 'गंभीर राजनीति में भी हास्य और देशीपन के लिए जगह है।' आज जब वो उम्र के एक और पड़ाव पर पहुंचे हैं, तो उनका राजनीतिक सफर देश को यह सिखाता है कि सिद्धांतों, जमीनी जुड़ाव और संघर्ष की राजनीति कभी पुरानी नहीं होती।


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