पुलिस हिरासत में डॉक्टर देवेंद्र शर्मा
पाठकराज
नोएडा (डिजिटल डेस्क)। ‘डॉक्टर डेथ’ के नाम से कुख्यात डॉ. देवेंद्र शर्मा की आपराधिक कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। अलीगढ़ के कस्बा छर्रा निवासी इस बीएएमएस डॉक्टर ने अपराध की दुनिया में कदम एक फर्जी गैस एजेंसी खोलकर रखा और धीरे-धीरे ट्रक लूट, हत्या और शवों को मगरमच्छों से भरी नहर में फेंकने तक पहुंच गया। देवेंद्र पर अब तक हत्या, अपहरण और साक्ष्य मिटाने के कुल 19 आपराधिक मामले दर्ज हैं।
शुरुआत: फर्जी गैस एजेंसी और ट्रक लूट
डॉ. देवेंद्र ने 1995 में छर्रा में एक फर्जी गैस एजेंसी की स्थापना की। इसी दौरान वह गांव दलालपुर निवासी उदयवीर, वेदवीर और राज के संपर्क में आया। इन साथियों के साथ मिलकर उसने एलपीजी सिलेंडर ले जा रहे ट्रकों के चालकों की हत्या कर लूटपाट शुरू की। लूटे गए ट्रकों को मेरठ में बेच दिया जाता था और सिलेंडरों को फर्जी एजेंसी में उतार लिया जाता था। डेढ़ साल बाद पुलिस ने नकली एजेंसी चलाने के आरोप में देवेंद्र को गिरफ्तार किया था।
शव नहर में, मगरमच्छों के हवाले
पूछताछ में खुलासा हुआ कि देवेंद्र ने कासगंज नहर में शव फेंकने की योजना इसलिए बनाई क्योंकि वहां मगरमच्छ मौजूद थे, जो शवों को खा जाते थे। इससे पुलिस को कभी कोई सबूत नहीं मिल सका।
जयपुर से लेकर दिल्ली तक फैलाया नेटवर्क
देवेंद्र ने 1984 से 11 वर्षों तक जयपुर के बांदीकुई में 'जनता हॉस्पिटल एंड डायग्नोस्टिक' के नाम से क्लीनिक भी चलाया। 1994 में एक गैस कंपनी में 11 लाख रुपये का निवेश डूबने के बाद वह अपराध की राह पर निकल पड़ा।
अपराध की अधिकांश घटनाएं अलीगढ़ से बाहर अंजाम दी गईं। 1995 में मथुरा के वृंदावन और हाथरस, 2002 में फरीदाबाद, 2003 में पलवल (हरियाणा), 2004 में होडल और बुलंदशहर में हत्याओं के मामले दर्ज हैं। देवेंद्र पर हत्या, अपहरण और साक्ष्य मिटाने जैसे गंभीर अपराधों के 19 मुकदमे विभिन्न थानों में दर्ज हैं।
पैरोल पर बाहर आया और फिर फरार हो गया
2020 में उम्रकैद की सजा पा चुका देवेंद्र शर्मा जयपुर की सेंट्रल जेल से जनवरी में 20 दिन की पैरोल पर बाहर आया था। इस दौरान वह छर्रा थाने में हाजिरी लगाता रहा, लेकिन एक दिन गांव जाने के बाद अचानक लापता हो गया। बाद में उसने दिल्ली में एक विधवा से शादी की और प्रॉपर्टी का व्यवसाय शुरू कर दिया। दिल्ली क्राइम ब्रांच ने छह माह बाद उसे पकड़ लिया।
गांव की प्रतिक्रिया: “हम पहचानते भी नहीं”
पुरैनी गांव, जहां देवेंद्र का पुश्तैनी घर है, अब वीरान है। ग्रामीणों का कहना है कि 80% लोग उसे पहचानते तक नहीं। कुछ साल पहले उसने पुश्तैनी जमीन बेचने की बात कही थी, लेकिन फिर कभी नहीं लौटा।
अपराध की राह में एनसीआर बना अड्डा
देवेंद्र ने एनसीआर क्षेत्र को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। दिल्ली, फरीदाबाद, मथुरा, पलवल, हाथरस और अलीगढ़ जैसे इलाकों की भौगोलिक समझ ने उसे पुलिस से बचने में मदद दी।