शराब घोटाले के आरोपी नेता
पाठकराज
नई दिल्ली (विकास राजपूत)। "शराब बहुत खराब है"—यह बात महज कहावत नहीं रही, बल्कि भारत की राजनीति में इसका असर अब ठोस हकीकत बनकर सामने आ रहा है। दिल्ली, छत्तीसगढ़ और अब झारखंड—तीनों राज्यों में शराब घोटालों ने न केवल सरकारों की छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि कई नेताओं और अफसरों को कानूनी शिकंजे में भी ला खड़ा किया है।
दिल्ली: घोटाले से जेल तक पहुंची सरकार
2021-22 की आबकारी नीति से जुड़ा दिल्ली शराब घोटाला अब तक का सबसे चर्चित मामला बन चुका है।
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इस घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित कई नेता ईडी और सीबीआई की रडार पर आए।
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ईडी ने केजरीवाल को 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया और उन्हें इस घोटाले का "मुख्य साजिशकर्ता" बताया।
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कहा जाता है कि इस घोटाले की वजह से आम आदमी पार्टी की जनाधार में भारी गिरावट आई, और दिल्ली की सियासत की दिशा ही बदल गई और दिल्ली में नई सरकार का गठन हो गया।
छत्तीसगढ़: भूपेश बघेल जांच के घेरे में
छत्तीसगढ़ में कथित 2161 करोड़ रुपये के शराब घोटाले ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि पर गहरा असर डाला है।
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यह घोटाला 2019 से 2022 के बीच की आबकारी नीति से जुड़ा है, जिसमें अवैध कमीशन और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं।
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ईडी की जांच में भूपेश बघेल और तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा के दस्तखतों वाली नोटशीट का उल्लेख है।
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बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को ईडी की ओर से समन भेजा गया है।
हालांकि, अभी तक भूपेश बघेल को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया, लेकिन जांच की आंच उनकी राजनीतिक जमीन को खाक करने में लगी हुई है।
झारखंड: हेमंत सोरेन पर भी सवाल
अब झारखंड में भी शराब घोटाले का जिन्न बाहर आ चुका है।
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हाल ही में सीनियर आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे की गिरफ्तारी ने इस घोटाले को सुर्खियों में ला दिया है।
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चौबे कभी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव रहे हैं और 2022 में लागू आबकारी नीति के दौरान वह एक्साइज सेक्रेटरी थे।
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आरोप है कि चौबे ने नीति में बदलाव कर एक सिंडिकेट को फायदा पहुंचाया, जिसमें शराब आपूर्ति और मैनपावर टेंडर में गड़बड़ी हुई।
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भले ही हेमंत सोरेन का नाम सीधे तौर पर सामने नहीं आया है, लेकिन चौबे की गिरफ्तारी ने राजनीतिक हमला करने के लिए विपक्ष को हथियार जरूर दे दिया है।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि शराब घोटाले सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं हैं, बल्कि ये राजनीतिक विस्फोट का कारण बन सकते हैं।
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“शराब से जुड़े मामलों में जितनी तेज कानूनी कार्रवाई होती है, उतनी ही तेज सियासी प्रतिक्रियाएं भी सामने आती हैं,” एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक का कहना है।
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इन मामलों ने साबित किया है कि नीति और नीयत में अंतर होने पर सत्ता की चूलें भी हिल सकती हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली में सरकार बदली, छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम निशाने पर हैं और झारखंड की सियासत भी गर्माई हुई है। शराब घोटाले अब सिर्फ कानूनी मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक मोर्चे का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुके हैं। आने वाले चुनावों में इन घोटालों का असर साफ तौर पर दिख सकता है।