व्यास पीठ पर कथा सुनाते हुए भागवताचार्य प्रकाशचंद विद्यार्थी
पाठकराज
सुलतानपुर। "मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के भीतर उठने वाले अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव हैं।" उक्त विचार भागवताचार्य प्रकाशचंद विद्यार्थी ने मंगलवार को महारानी पश्चिम गांव (चांदा) में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन व्यक्त किए।
विद्यार्थी जी ने भगवान के चौबीस अवतारों और समुद्र मंथन की कथा को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है, जिसमें चौरासी लाख योनियों के रूप में विविध प्रकार के पुष्प खिले हैं। जब कोई अपने कुकर्मों से इस बगीचे को दूषित करने का प्रयास करता है, तब भगवान सज्जनों के उद्धार और दुर्जनों के संहार हेतु अवतार लेते हैं।
समुद्र मंथन की कथा को आत्ममंथन से जोड़ते हुए उन्होंने बताया कि जैसे देवता और दानव मिलकर समुद्र मंथन करते हैं, वैसे ही मानव के भीतर अच्छे और बुरे विचारों का निरंतर संघर्ष चलता रहता है। अंततः जिसका 'भीतर का देवता' विजयी होता है, उसका जीवन सुख, संतोष और भगवत प्रेम से भर जाता है।
भजनों पर झूमे श्रद्धालु
कथा के दौरान मधुर भजनों और संगीतमय प्रस्तुति ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भजनों की धुन पर श्रद्धालु झूमते नजर आए।
इससे पहले मुख्य यजमान शेषनाथ मिश्र ने विधिवत व्यासपीठ का पूजन किया। आयोजन में अमरनाथ मिश्र, वरुण, रामयज्ञ ओझा, इंद्रजीत मिश्र, अमृतलाल समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और कथा का रसास्वादन किया।