Sunday, June 22, 2025 12:19:03 AM

पंकज त्रिपाठी की अभिनय यात्रा
हमारा सिनेमा हमारी मिट्टी से है, इसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती — पंकज त्रिपाठी

पंकज त्रिपाठी ने अभिनय के माध्यम से भारतीय संस्कृति की गहराइयों का प्रतिनिधित्व किया है, OTT प्लेटफॉर्म के उदय से उनके करियर में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया।

हमारा सिनेमा हमारी मिट्टी से है इसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती — पंकज त्रिपाठी
अपने गांव बिहार में पंकज त्रिपाठी | पाठकराज
पाठकराज

नई दिल्ली। पंकज त्रिपाठी — एक ऐसा नाम जो अभिनय में सहजता, गहराई और भारतीयता का प्रतीक बन चुका है। चाहे वो कृष्णा का ठेठ अंदाज़ हो 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में, या 'मिर्ज़ापुर' का कालीन भैया, पंकज के हर किरदार में उनकी मिट्टी की महक महसूस होती है। पर पंकज सिर्फ किरदारों के लिए ही नहीं, अपनी सोच और जीवन-दर्शन के लिए भी उतने ही सराहे जाते हैं।

वह मानते हैं कि भारतीय सिनेमा की कहानी हमारी संस्कृति से शुरू होती है। “हमारे यहां तो धान रोपने में भी गाने गाए जाते हैं। तो सिनेमा में गाने का होना स्वाभाविक है। इसलिए यह तुलना करना कि पश्चिम के सिनेमा में गाने नहीं हैं, तो हमारे सिनेमा को भी ऐसा होना चाहिए — यह बेमानी है।”

 

OTT: अभिनय की संजीवनी बूटी

पंकज त्रिपाठी का मानना है कि उनके करियर में असली बदलाव OTT प्लेटफॉर्म्स के आने से हुआ। “मिर्जापुर हो, क्रिमिनल जस्टिस हो या सेक्रेड गेम्स — इन वेब सीरीज़ ने मेरी पहचान बनाई।” वे कहते हैं, “पहले मेरी तरह के अभिनय को लोग समझ नहीं पाते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया और इंटरनेट की बदौलत लोग खुद खोजते हैं, सराहते हैं।”

 

संघर्ष का दौर था, मगर संतुलित था

पंकज बताते हैं कि उनके संघर्ष के दिन 9-10 साल तक चले, लेकिन उनकी पत्नी शिक्षक थीं और आवश्यकताएं सीमित थीं, इसलिए कोई जीविका संकट नहीं था। “तब सोशल मीडिया नहीं था, तो मैं ज्ञान खोजता था, साहित्य और दर्शन पढ़ता था।”

 

सिनेमा की जड़ों की ओर वापसी

वह कहते हैं कि पहले सिनेमा साहित्य से उपजता था। “फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर बनी ‘तीसरी कसम’ इसका उदाहरण है। बीच के समय में ये कड़ी टूटी, लेकिन अब फिर से रचनात्मकता अपनी जड़ों की ओर लौट रही है — 'पंचायत', 'गुल्लक' जैसे उदाहरण इसके प्रमाण हैं।”

 

एक्टर की 12 घंटे की शिफ्ट, और इमोशनल लेबर

फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए पंकज कहते हैं, “हमारी इंडस्ट्री में 12 घंटे की शिफ्ट सामान्य मानी जाती है, जबकि इंसान को सिर्फ 8 घंटे काम करना चाहिए। शूटिंग के दौरान जब मेरी नींद पूरी नहीं होती, तो उसका असर अभिनय पर पड़ता है। क्योंकि हम एक्टर्स इमोशनल लेबर करते हैं — हमें बटन से ऑफ नहीं किया जा सकता।”

 

वैश्विक मान्यता कोई पैमाना नहीं

वह मानते हैं कि आर्ट की कोई तुलना नहीं हो सकती। “अगर हमें अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिलते, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम अच्छा काम नहीं कर रहे। हमारी कहानियां, हमारी संवेदनाएं, हमारी संस्कृति अलग है — उसका सम्मान जरूरी है।”


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