सांकेतिक तस्वीर | पाठकराज
पाठकराज
नोएडा। जनसंख्या और शहरीकरण की तेज़ी से बढ़ती रफ्तार के बीच नोएडा एक और संकट से जूझ रहा है — जानवरों के हमलों का संकट। वर्ष 2025 के पहले पांच महीनों में जिले में 74,217 लोग जानवरों के हमलों का शिकार बने, जिनमें पालतू और आवारा कुत्तों से लेकर बंदर और बिल्लियों तक का आतंक शामिल है।
कुत्तों का सबसे बड़ा हमला — आवारा बनाम पालतू
52,707 मामले सिर्फ आवारा कुत्तों द्वारा काटने के सामने आए हैं।
पालतू कुत्तों द्वारा काटने के 16,474 मामले भी दर्ज किए गए हैं, जो डॉग ऑनरशिप और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करते हैं।
औसतन हर महीने 10,000 से ज्यादा डॉग बाइट केस, यानी हर रोज़ 300 से अधिक लोग कुत्तों का शिकार बन रहे हैं।
डॉग पॉलिसी लागू होने के बावजूद बाइट के मामलों में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई है।
बंदर भी बने हमलावर — 3,883 मामले दर्ज
बंदरों का आतंक भी कम नहीं है।
जनवरी से मई के बीच 3,883 लोगों पर बंदरों ने हमला किया।
ज़्यादातर मामले सेक्टर 15, 19, 27 और ग्रेटर नोएडा वेस्ट से आए हैं।
लोग छतों और बालकनियों में खाना बनाना, कपड़े सुखाना तक बंद कर चुके हैं।
बिल्लियाँ भी पीछे नहीं — 1,169 कैट बाइट मामले
1,169 लोगों को बिल्लियों ने काटा या घायल किया।
इनमें से अधिकतर मामले रिहायशी सोसाइटीज़ और खुले कूड़े के ढेरों के पास के हैं।
जनता परेशान, व्यवस्था लाचार
स्थानीय निवासियों और आरडब्ल्यूए का कहना है कि:
“कुत्तों के झुंड सोसाइटी में दिन-रात घूमते हैं, बच्चों और बुजुर्गों पर झपटते हैं, लेकिन जिला प्रशासन और अथॉरिटी दोनों चुप हैं।”
– योगेंद्र शर्मा, अध्यक्ष, फोनरवा
डॉग पॉलिसी – सिर्फ कागज़ों तक सीमित?
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और नोएडा प्रशासन द्वारा लागू की गई डॉग पॉलिसी के तहत
कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों पर पट्टे से बांधना अनिवार्य
फैसिस्ट्रेशन (नसबंदी) और टीकाकरण अनिवार्य
पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन जरूरी
सार्वजनिक स्थानों पर मल-मूत्र की सफाई की जिम्मेदारी मालिक की
ज़मीनी हकीकत यह है कि न रजिस्ट्रेशन हो रहा, न कार्रवाई।
अस्पतालों पर दबाव, वैक्सीन की किल्लत
सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज इंजेक्शन की मांग लगातार बढ़ रही है।
कई स्वास्थ्य केंद्रों में वैक्सीन की कमी की शिकायतें मिली हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में एक डोज की कीमत 450 से 900 रुपए तक जा रही है, जो गरीब परिवारों के लिए भारी बोझ बन रही है।