नोएडा (विकास राजपूत)। देश के तीन प्रमुख भाजपा शासित राज्यों—दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार—में डग्गामार निजी बसों का संचालन एक बड़ी चुनौती बन गया है। इन राज्यों में बनी एक्सप्रेसवे जैसी आधुनिक सड़कों ने यात्रा को तो सुगम किया है, लेकिन निजी बस संचालकों की मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते सड़क हादसों की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
16 आरटीओ पार, फिर भी न कोई जांच
लखनऊ के मोहनलालगंज में हाल ही में हुए दर्दनाक हादसे में पांच लोगों की जलकर मौत हो गई। यह बस बिहार से दिल्ली तक लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय कर रही थी, इस दौरान यह 16 आरटीओ और एआरटीओ के क्षेत्र से गुजरी, फिर भी कहीं भी चेकिंग नहीं हुई।
बस में इमरजेंसी गेट बंद था, और अन्य सुरक्षा मानकों की भी अनदेखी की गई थी। इसके बावजूद बस बेरोकटोक दिल्ली पहुंच रही थी, जो प्रशासनिक नाकामी और मिलीभगत की ओर इशारा करता है।
बसों में लदा व्यापारिक माल, बनाई गईं अनाधिकारिक पार्किंग
दिल्ली की फैक्ट्रियों से जींस, जूते, चप्पल समेत अन्य सामान इन बसों में लादकर यूपी और बिहार भेजा जा रहा है। इन बसों के लिए दिल्ली नगर निगम की कई पार्किंग स्थलों को अवैध बस अड्डों में तब्दील कर दिया गया है।
डग्गामार बस अड्डों के हॉटस्पॉट:
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दिल्ली: गाजीपुर, आनंद विहार, न्यू अशोक नगर, नंद नगरी, गीता कॉलोनी, शास्त्री पार्क, सीलमपुर, वेलकम, ब्रह्मपुरी पुलिया, बिहारी कॉलोनी, आदि।
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नोएडा: सेक्टर 37, 62, सदरपुर सोम बाजार, सेक्टर 57, खोड़ा।
इन जगहों पर बिना किसी वैध परमिट और सुरक्षा जांच के बसें यात्रियों और माल के साथ खुलेआम चलाई जा रही हैं।
सवालों के घेरे में सरकार और आरटीओ सिस्टम
इतने बड़े पैमाने पर अवैध संचालन के बावजूद प्रशासन की चुप्पी और प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। आरटीओ की चेक पोस्ट बस नाम की रह गई हैं, और मौके पर मौजूद अफसरों की भूमिका जांच का विषय बन गई है।
डग्गामार बसों की अनदेखी केवल यात्री सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था, टैक्स चोरी, और सिस्टम की विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्न उठाती है। सवाल यह है कि जब तीन राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार है, तब भी तालमेल और निगरानी क्यों नाकाम है?