सीएम योगी की फोटो | पाठकराज
पाठकराज
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तबादलों को लेकर जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। पारदर्शिता के दावे इस बार पूरी तरह धराशायी हो गए हैं। स्वास्थ्य, स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन, आयुष, वन, शिक्षा, कृषि, पशुधन और होम्योपैथी जैसे प्रमुख विभागों में हुए तबादलों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि कई विभागों में तबादला आदेश निरस्त या तबादला सत्र ही शून्य घोषित करना पड़ा।
सीएम को देनी पड़ी दखल की 'डोज'
तबादलों को लेकर उठे बवाल के बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप करना पड़ा। कुछ विभागों में तबादला आदेश वापस लिए गए तो कुछ अधिकारियों को प्रतीक्षारत कर दिया गया। स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन और वन विभाग में सभी तबादले निरस्त कर दिए गए हैं, जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में तो पूरा तबादला सत्र ही खत्म कर दिया गया।
स्वास्थ्य विभाग: सबसे बड़ा विवाद केंद्र
आयुष विभाग ने नियम ही अपनी सुविधा अनुसार बना दिए।
12 साल से एक जिले में तैनाती को तबादले का आधार बनाया गया, ताकि रसूखदार डॉक्टर बच सकें।
कई डॉक्टर 15–16 साल से जमे बैठे हैं, फिर भी untouched!
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में महानिदेशक स्तर पर सूची बनी, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक से मंजूरी नहीं मिली।
बिना अनुमति तबादला सूची फाइनल करने पर डीजी (प्रशासन) भवानी सिंह खंगारौत हटाए गए।
स्टांप रजिस्ट्रेशन विभाग में 200 तबादले रद्द
200 उप निबंधकों और लिपिकों के तबादलों में गड़बड़ी की शिकायत सीधे सीएम तक पहुंची।
समीर वर्मा, महानिरीक्षक निबंधक को हटाया गया, विभागीय तबादले निरस्त।
शिक्षा विभाग भी विवादों से अछूता नहीं
बीएसए तबादलों पर सीएम स्तर से रोक
ऑनलाइन की बजाय ऑफलाइन सूची तैयार, ताकि चहेतों को फायदा पहुंचाया जा सके
धन उगाही के आरोप भी सामने आए
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे.एन. तिवारी का दावा है:
“कई विभागों में तबादलों की सूची में नाम जोड़ने और हटाने के लिए बड़े पैमाने पर धन उगाही हुई है। तबादलों की पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव दिखा। हमारी मांग है कि जिन विभागों में गड़बड़ी हुई, वहां जांच कर जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जाए। इसके लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया है।”
तबादला नीति की मूल भावना को लगा झटका
तबादला सत्र का उद्देश्य था कि साल में एक ही बार सभी आवश्यक तबादले कर दिए जाएं ताकि प्रशासनिक कामकाज पर असर न पड़े। लेकिन इस बार जिस तरह से मंत्री–प्रमुख सचिवों के बीच टकराव, लॉबिंग, और निजी लाभ के लिए नियमों की अनदेखी हुई, उसने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब तक की स्थिति:
1000+ तबादला आदेश निरस्त या सत्र शून्य
5+ विभागों में सीएम स्तर पर कार्रवाई
कई अधिकारियों को प्रतीक्षारत किया गया
मंत्री-मंत्रालय के बीच समन्वय का अभाव उजागर