नोएडा। देश की सबसे तेज़ी से बढ़ती शहरी बसाहटों में शामिल नोएडा एक बार फिर निर्माण स्थलों पर श्रमिकों की मौत को लेकर सवालों के घेरे में है। चमचमाती ऊँची इमारतों के पीछे मज़दूरों की लाशों का सन्नाटा छिपा है। सेफ्टी उपकरणों के अभाव और बिल्डरों की मनमानी ने इसे एक संरचनात्मक नरसंहार बना दिया है।
गत कुछ महीनों में नोएडा के विभिन्न सेक्टरों — विशेषकर सेक्टर 93, 150, 128 और ग्रेटर नोएडा वेस्ट में निर्माण स्थलों पर दर्जनों मज़दूर जान गंवा चुके हैं। इन घटनाओं में एक भी मामले में सेफ्टी हेलमेट, हार्नेस या बेसिक सुरक्षा उपायों का पालन नहीं पाया गया।
"हमें बस दिहाड़ी चाहिए साहब, सेफ्टी माँगे तो काम से निकाल देते हैं…"
– एक श्रमिक, नाम न छापने की शर्त पर
‘कंस्ट्रक्शन बूम’ की कीमत कौन चुका रहा है?
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हर दिन नए प्रोजेक्ट लॉन्च होते हैं। ऊँचाईयों पर लटकते मज़दूरों की ज़िंदगी रोज़ जोखिम में रहती है, लेकिन बिल्डर सिर्फ़ प्रोजेक्ट डेडलाइन की बात करते हैं, न कि सेफ्टी प्रोटोकॉल की।
ज्यादातर प्रोजेक्ट्स में
कोई सेफ्टी ट्रेनिंग नहीं
न तो डॉक्टर ऑन साइट, न ही एम्बुलेंस
फायर सेफ्टी भी सिर्फ़ कागज़ों में
प्रशासन बेखबर या फिर अनदेखा करने वाला?
हादसों के बाद कुछ दिन तक विभागीय जांच और नोटिस की रस्म अदायगी होती है, फिर सब वैसा ही चलता रहता है।
लेबर डिपार्टमेंट, नोएडा अथॉरिटी और बिल्डर लॉबी की त्रिकोणीय खामोशी हर मज़दूर की मौत पर पर्दा डाल देती है।
"सुरक्षा के नाम पर मज़दूरों को सिर्फ़ ठेकेदार की दया पर छोड़ा गया है।"
– स्थानीय
क्या कहता है कानून?
भारतीय श्रम कानूनों के मुताबिक सभी कंस्ट्रक्शन साइट पर सेफ्टी उपकरण, फर्स्ट एड, फॉल प्रोटेक्शन अनिवार्य है। बिल्डर और ठेकेदार पर आपराधिक मुकदमा चल सकता है। फिर भी ज़मीनी हकीकत यह है कि ऐसे मामलों में शायद ही किसी बिल्डर पर कार्रवाई होती हो।