सांकेतिक तस्वीर | पाठकराज
पाठकराज
नोएडा/आगरा। उत्तर प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए चल रहे पुलिस के चर्चित 'लंगड़ा अभियान' पर अब सवाल उठने लगे हैं। यह अभियान अपराधियों के पैरों में गोली मारने की रणनीति के लिए जाना जाता है, जिसका उद्देश्य अपराधियों में डर पैदा करना और दोबारा अपराध से रोकना बताया जाता है। लेकिन हाल ही में सामने आए मामलों में फर्जी एनकाउंटर और हिरासत में मारपीट के आरोपों ने इस अभियान की पारदर्शिता और वैधता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सबसे ताजा मामला आगरा जिले के थाना रकाबगंज क्षेत्र का है, जहां 31 मई की रात गौकशी के आरोपी इमरान उर्फ बबुआ को पुलिस मुठभेड़ में घायल करने का दावा किया गया था। पुलिस के मुताबिक, आरोपी को मुठभेड़ के दौरान गोली लगी और उसे गिरफ्तार किया गया। लेकिन कोर्ट में पेशी के दौरान इमरान ने विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दिया कि पुलिस ने पहले बेरहमी से पीटा और फिर जानबूझकर उसके पैर में गोली मारी।
कोर्ट ने लिया संज्ञान
आरोपी की बात को गंभीरता से लेते हुए विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुनः मेडिकल जांच के आदेश दिए। मेडिकल रिपोर्ट में आरोपी के शरीर पर दो नई चोटों की पुष्टि हुई, जिससे उसकी बात को बल मिला। इसके बाद कोर्ट ने डीजीपी को पत्र लिखकर मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और विभागीय जांच कराने की सिफारिश की है।
इस बीच पुलिस विभाग ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ रिवीजन याचिका दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी है। आगरा पुलिस का कहना है कि यह मुठभेड़ वैधानिक प्रक्रिया के तहत हुई थी और इसमें कोई अनियमितता नहीं बरती गई।
लगातार मुठभेड़ें, बढ़ते सवाल
पिछले दो महीने में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में दर्जनों एनकाउंटर हुए हैं, जिनमें कई आरोपियों के पैरों में गोली मारकर गिरफ्तारी की गई। लेकिन अब यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सब पूर्वनियोजित कार्रवाई है? क्या अपराधियों को मुठभेड़ के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है?
मानवाधिकार विशेषज्ञों की चिंता
मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस तरह की कार्रवाइयों को न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध बताया है। उनका कहना है कि यदि कोई अपराधी है तो उसे अदालत में पेश किया जाए, न कि बंद कमरे में सजा दी जाए।
उत्तर प्रदेश में ‘लंगड़ा अभियान’ के तहत पुलिस भले ही अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का दावा कर रही हो, लेकिन हिरासत में मारपीट और गोली मारने के आरोप पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं। अब देखना होगा कि कोर्ट की सख्ती और बढ़ती जनचर्चा के बीच यह अभियान सुधरता है या सवालों में और उलझता है।