प्रदर्शन करता एक युवा | पाठकराज
पाठकराज
नोएडा। क्या नोएडा जैसे आधुनिक, आईटी और स्टार्टअप हब में काम करने वाले युवा वास्तव में ईस्कॉन जैसी धार्मिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की विचारधारा से जुड़ रहे हैं, या यह किसी योजनाबद्ध मुहिम का हिस्सा है?
देश के प्रमुख आईटी और कॉर्पोरेट सेक्टर में गिनती होने वाले शहर नोएडा में एक नई सामाजिक और वैचारिक लहर देखी जा रही है। ईस्कॉन (ISKCON) की धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधारा यहां के युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है। जहां एक ओर यह बदलाव आध्यात्मिक जागरूकता की मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कई जानकार इसे संघटित वैचारिक अभियान मान रहे हैं।
बड़े शहरों में ईस्कॉन की बढ़ती पहुंच
सेक्टर 33 स्थित ईस्कॉन नोएडा मंदिर अब केवल पूजा-पाठ का केंद्र नहीं रहा।
यहां आईटी प्रोफेशनल्स, स्टार्टअप एंटरप्रेन्योर्स, और कॉलेज स्टूडेंट्स की नियमित आवाजाही हो रही है।
सप्ताहांत में “गीता क्लासेस”, “माइंडफुलनेस सेशन”, “सत्संग विद इनर इंजीनियर्स” जैसी गतिविधियों में युवाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है।
क्या यह वैचारिक जुड़ाव है या मानसिक थकान से राहत का जरिया?
विशेषज्ञों की मानें तो:
"आईटी सेक्टर में काम करने वाले युवा अत्यधिक तनाव में रहते हैं। धार्मिक या ध्यान आधारित गतिविधियां उन्हें मानसिक शांति का अनुभव कराती हैं।"
हालांकि, कुछ सामाजिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि:
"धर्म के नाम पर एक खास विचारधारा को युवाओं में रोपने का यह सुसंगठित प्रयास भी हो सकता है।"
क्या कहता है युवा वर्ग?
बेसिक एआई स्टार्टअप में काम करने वाले 26 वर्षीय आदित्य कहते हैं:
"वर्कलोड के बीच यह मुझे स्थिरता और फोकस देता है। ईस्कॉन ने मुझे मेडिटेशन और लाइफ बैलेंस सिखाया।"
वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा और नोएडा में डेटा एनालिस्ट पूजा का कहना है:
"यह धर्म से अधिक जीवन जीने की एक स्टाइल है — साफ खानपान, मन की शुद्धता, और व्यवहार में संयम।"
सोशल मीडिया और प्रचार
ईस्कॉन की सोशल मीडिया रणनीति भी बेहद प्रभावशाली है।
Instagram, YouTube और LinkedIn पर ध्यानाकर्षक वीडियो, जीवन-प्रबंधन टिप्स और आध्यात्मिक मैसेज युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
क्या यह नई धार्मिक क्रांति है?
नोएडा के शहरी, तकनीकी और युवा माहौल में ईस्कॉन की बढ़ती स्वीकार्यता निश्चित तौर पर एक सामाजिक अध्ययन का विषय है। यह धार्मिक जागरूकता, मानसिक स्वास्थ्य का समाधान, या संघटित वैचारिक विस्तार — कुछ भी हो सकता है।
परंतु एक बात स्पष्ट है — आधुनिक भारत का युवा अब सिर्फ मेट्रो और माउस तक सीमित नहीं, बल्कि वह अपने मन और मूल्यों की तलाश में भी निकल चुका है।