कौशांबी स्थित यशोदा अस्पताल | पाठकराज
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गाज़ियाबाद। मौत हमेशा अंत नहीं होती… कभी-कभी यह किसी और के जीवन की नई शुरुआत बन जाती है। ऐसा ही एक दिल को छू लेने वाला दृश्य रविवार को कौशांबी के यशोदा अस्पताल में देखने को मिला, जब एक ब्रेन डेड छात्रा की निःशब्द देह ने पाँच लोगों को फिर से जीने का मौका दे दिया।
26 मई को अचानक सिर दर्द से बेहोश हुई पीएचडी की होनहार छात्रा को परिजन लेकर यशोदा अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि मस्तिष्क की नस फट चुकी है, और अत्यधिक रक्तस्त्राव से दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है। कुछ ही घंटों में वो लड़की, जो एक दिन किसी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर बनने का सपना देखती थी, ब्रेन डेड घोषित कर दी गई।
"अगर मेरी बेटी किसी को ज़िंदगी दे सके, तो हम पीछे क्यों हटें?"
छात्रा के पिता, जो दिल्ली के एक सरकारी स्कूल से सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, ने बेटी के बिस्तर के पास बैठकर कहा,
“हमारी बेटी तो अब लौट नहीं सकती… लेकिन अगर उसका दिल, उसकी आंखें, उसका जीवन किसी और की साँस बन जाएं, तो हमें संतोष होगा।”
यह कहते हुए उन्होंने बिलखती मां की आँखों से आँसू पोंछे, और डॉक्टरों को अंगदान की सहमति दे दी। उस रात बेटी तो चली गई—but she didn’t go alone, she took hope with her for five families.
दिल, लीवर, दोनों किडनी और आंखें... पाँच जिंदगियों में फिर से धड़कने लगीं
दिल: फोर्टिस, ओखला में एक युवा को नई जान
लीवर और किडनी: मेदांता, गुरुग्राम में दो मरीजों को जीवनदान
एक किडनी: मैक्स, वैशाली
आंखें: नोएडा के आई केयर अस्पताल में रोशनी लौटाई
अमिट छाप छोड़ गई एक बेटी... जो अब भी ज़िंदा है
उस छात्रा ने न केवल अपने अंग दिए, बल्कि इंसानियत को नई परिभाषा दी। एक मृत शरीर अब पाँच नई ज़िंदगियों में धड़क रहा है, देख रहा है, मुस्कुरा रहा है। इस पिता की बेटी ने जो किया, वो शायद ज़िंदगी भर लोगों के दिलों में एक रौशनी बनकर चमकता रहेगा।