नोएडा जिला अस्पताल में शुरू हुआ टोकन सिस्टम, गर्भवती महिलाओं के हंगामे के बाद प्रशासन ने लिया फैसला
नोएडा। सेक्टर-39 स्थित जिला अस्पताल में मंगलवार से अल्ट्रासाउंड जांच के लिए टोकन सिस्टम की शुरुआत कर दी गई है। यह व्यवस्था अस्पताल में लगातार बढ़ती अव्यवस्था और मरीजों की शिकायतों के बाद लागू की गई है। खासतौर पर पिछले बृहस्पतिवार को गर्भवती महिलाओं द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन हरकत में आया।
बीते बृहस्पतिवार को अल्ट्रासाउंड के लिए लाइन में खड़ी गर्भवती महिलाओं का गुस्सा तब फूट पड़ा, जब एक गार्ड द्वारा कथित रूप से एक महिला को धक्का दिए जाने की बात सामने आई। इसके विरोध में महिलाओं ने मौके पर ही गार्ड की चप्पलों से पिटाई कर दी।
महिलाओं का आरोप था कि वे तीन घंटे से लाइन में खड़ी थीं, फिर भी उन्हें जांच के लिए अंदर नहीं जाने दिया जा रहा था। वहीं, कुछ ऐसे लोगों को अंदर भेजा जा रहा था जो बाद में आए थे। कुछ महिलाओं ने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल कर्मी पैसों के बदले अल्ट्रासाउंड की प्राथमिकता तय कर रहे हैं। यह आरोप बेहद गंभीर है और अस्पताल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।
व्यवस्था सुधारने के लिए प्रशासन ने उठाया कदम
प्रकरण सामने आने के बाद जिला अस्पताल प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए मंगलवार से टोकन आधारित प्रणाली लागू कर दी है। अब अल्ट्रासाउंड के लिए आने वाले मरीजों को पहले रजिस्ट्रेशन के दौरान एक टोकन नंबर दिया जाएगा और उसी के क्रम में जांच की जाएगी। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि इस कदम से लाइन की अव्यवस्था, धांधली और धक्का-मुक्की जैसे हालात पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
अस्पताल के सीएमएस ने बताया कि,
“अब मरीजों को सुबह ही टोकन दे दिए जाएंगे। जांच का समय स्पष्ट होगा और किसी प्रकार की मनमानी या भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
स्थानीय लोगों और मरीजों ने किया स्वागत, की पारदर्शिता की मांग
टोकन सिस्टम की शुरुआत से मरीजों और उनके परिजनों में संतोष देखा गया। कई लोगों ने कहा कि यदि यह प्रणाली सही तरीके से लागू की जाए, तो इससे अस्पताल में होने वाले भ्रष्टाचार और धांधली पर रोक लगाई जा सकती है। हालांकि लोगों ने यह भी मांग की कि प्रशासन सख्ती से निगरानी बनाए रखे और यह सुनिश्चित करे कि टोकन देने की प्रक्रिया भी पारदर्शी हो।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की जरूरत
यह घटना और उसके बाद उठाया गया कदम इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पारदर्शिता को बेहतर बनाए जाने की अति आवश्यकता है। गर्भवती महिलाओं को घंटों लाइन में खड़ा रखना और उन्हें असम्मानजनक व्यवहार झेलना पड़ना, स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है।